J.K. Temple

The JK Temple is a temple in the Indian city of Kanpur. Considered to be a unique blend of ancient and modern architecture, its mandapas have been constructed with high roof for adequate ventilation of light and air. The J. K. Trust has constructed this temple. The major maintenance expenses of the temple also come from the trust fund. The temple also known as Radhakrishan Temple.

Lal Imli

LAL IMLI COTTON MILL THE BRITISH INDIA CORPORATION was registered as a Limited Company on the 24th February, 1920. It was founded by the late Sir Alexander Mac Robert. The corporation was formed with the specific object of combining and amalgamating, under one Board of Directors, the following business with effect from the Ist of January, 1920.

Kanpur Zoo.

Allen Forest Zoo Kanpur Zoo, also called the Kanpur Zoo) is a 77-hectare (190-acre) zoo in Kanpur, the industrial hub of Uttar Pradesh in North India. It is the largest open green space in Kanpur. Originally a natural habitat for fauna, it is one of the few zoos in India created in a natural forest.

I.I.T. Kanpur.

Indian Institute of Technology Kanpur The Indian Institute of Technology Kanpur (commonly known as IIT Kanpur or IITK) is a public research college located in Kanpur, Uttar Pradesh. It was declared to be Institute of National Importance by Government of India under IIT Act.

Friday, 16 November 2018

सियाचिन व लद्दाख में दुश्मनों से मोर्चा लेने वाले सैनिकों तक गर्म खाना पहुंचने के लिए एक ऐसा फूड कंटेनर बनाया गया है जो -40 डिग्री सेल्सियस की हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी खाने को गर्म रख सकता है। इस तापमान में 12 घंटे बाद भी महज 20 डिग्री सेल्सियस की हीट ही बाहर निकल पाती है।
 
सीएसए परिसर में लगे डिफेंस एक्सपो में सेना के लिए बनाए गए इस फूड कंटेनर का स्टॉल नेट प्लास्ट ने लगाया।इस फूड कंटेनर में खाने के टिफिन के स्टील को इस तरह से डिजाइन किया गया है जिससे हीट बाहर न निकल सके और वह गर्म बना रहता है। इसमें लगा पालीयूरीथीन खाने को एयरटाइट कर देता है जबकिस्टील उसकी ऊर्जा को रोके रहता है। वरिष्ठ प्रबंधक व बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर शरद मिश्रा ने बताया कि 50 हजार से ज्यादा फूड कंटेनर का सेना इस्तेमाल कर रही है।


ऊंची इमारतों में आग लगने पर निकलेगा इमरजेंसी स्केप सूट
डीआरडीओ दिल्ली ने एक ऐसा इमरजेंसी स्केप सूट तैयार किया है जो ऊंची इमारतों में आग लगने पर वहां फंसे लोगों को सुरक्षित नीचे उतार सकता है। इसे फायर ब्रिगेड की सीढ़ी की मदद से 150 फीट ऊंची इमारत में लगाकर नागरिकों को बचाया जा सकता है। बड़ी आसानी से वह इसके जरिए फिसलकर नीचे आ सकते हैं। इसमें बीच बीच में बैठा भी जा सकता है। डीआरडीओ वैज्ञानिक प्रवीण राजपूत ने बताया कि हेलीकॉप्टर से सैनिकों को मैदानी क्षेत्रों में उतारना में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। हेलीकॉप्टर में यह आसानी से बांधा जा सकता है।

 
दूर बैठे दुश्मनों को ट्रेस करेगा लेजर लोकेटर.
दूरबीन से देखकर हमले का मौका तलाशने वाले दुश्मनों को ट्रेस करने के लिए डीआरडीओ ने लेजर लोकेटर तैयार किया है। यह डेढ़ किलोमीटर की दूरी तक कार में व दूर छिपकर बैठे व्यक्ति की हरकतों पर नजर रखने में सक्षम है। इसमें लगे ग्लोबल पोजीशिनिंग सिस्टम (जीपीएस), लो लेवल रेडियो फ्रिक्वेंसी एलआरएफ व सेंसर से धुएं व धुंध में भी देखा जा सकता है।
डीआरडीओर वैज्ञानिक राजेश तिवारी ने बताया कि वीआइपी के आने पर यह सुरक्षा कवच का काम करता है। इसके अलावा सरहदों की निगहबानी करने के लिए भी सेना इसका इस्तेमाल कर रही है। इंटरनेट के जरिए इससे चारों ओर भी देखा जा सकता है। इसकी खासबात यह भी है कि इसमें 24 घंटे रिकॉर्डिंग की जा सकती है। 

Monday, 2 July 2018

ग्रीन पार्क स्टेडियम कानपुर में लापरवाही

विश्वभर में अपनी हरियाली के लिए विख्यात ग्रीन पार्क स्टेडियम अब फ्लड लाइट में कम रोशनी के कारण बड़े क्रिकेट मैच की मेजबानी गंवा सकता है। यहां पर निर्माण का काम करने वाली संस्था आवास-विकास परिषद प्रदेश में घर बनाने का काम करती है, इसी कारण वह स्टेडियम के निर्माण में भी कुछ वैसा ही काम कर रही है।
विश्व क्रिकेट में कई रिकार्ड का गवाह रहा ग्रीन पार्क स्टेडियम आवास विकास की लापरवाह कार्यशैली के चलते डे नाइट मैचों से हाथ धो सकता है। यहां पर 33.57 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले प्लेयर पवेलियन के निर्माण में आवास विकास परिषद की लापरवाही से मैदान और पिच पर रोशनी की तीव्रता अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम हो गई है। इसके कारण ग्रीन पार्क को डे नाइट मैच की मेजबादी चाहिए तो पुरानी फ्लड लाइट शिफ्ट करने या नई लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यहां पर अब आवास विकास की गलती सुधारने की कीमत चार करोड़ से 14 करोड़ रुपये तक चुकानी होगी। इस मामले में महालेखा परीक्षक कार्यालय ने आपत्ति भी लगाई है, जिसके लंबित रहने के कारण आज तक यह प्लेयर पवेलियन खेल विभाग को हैंडओवर नहीं हो सका है।

ग्रीनपार्क में प्लेयर पवेलियन की निर्माण एजेंसी आवास विकास परिषद है। अधिकारियों ने निर्माण में शुरुआत से लापरवाही बरती। निर्माण शुरू करने के छह महीने बाद नक्शे में पवेलियन की ऊंचाई डेढ़ मीटर अधिक होने पर आपत्ति के बाद भी निर्माण जारी रखा। खेल विभाग ने इसे तकनीकी मानकों के अनुसार सही नहीं बताया था लेकिन आपत्ति को दरकिनार करते हुए प्लेयर पवेलियन की ऊंचाई बढ़ा दी गई।

ग्रीन पार्क की पिच और आउटफील्ड पर पहुंचने वाली रोशनी कम हो गई है। हैरत की बात यह है कि काम का लगातार स्थलीय निरीक्षण होता रहा लेकिन किसी अधिकारी का ध्यान इस खामी पर नहीं गया। वर्ष 2013 में डायरेक्टर पवेलियन बनने के दौरान यही गलती हुई थी।

Tuesday, 30 January 2018

कचहरी पहुंचे मेक जोक ऑफ - देखें वीडियो

बीते दिनों इंटरनेट पर सबसे ज्यादा जिस यूट्यूब चैनल के वीडियोज की चर्चा हुई है वो ‘मेक जोक ऑफ’ की ही हुई है। ठेठ यूपी और खासकर कानपुर की बोलचाल वाले ये वीडियोज लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं। इस यू-ट्यूब चैनल ने सिर्फ 13 वीडियो ही डाले हैं लेकिन इनके सब्सक्राइबर की संख्या 18 लाख के करीब है। अब मेक जोक ऑफ ने एक नया वीडियो शेयर किया है, यह वीडियो- द कोर्टरूम नाम से है। महज आधे घंटे के अंदर इस वीडियो को डेढ़ लाख से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं।

इस बार वीडियो में कोर्ट रूम की सिरदर्दी दिखाई गई है। हर बार की तरह इस बार भी वीडियो काफी मजेदार है जिसे देखकर आप अपनी हंसी नहीं रोक पाएंगे। कोर्ट का जज किस तरह परेशान है यह वीडियो में देखने को मिल रहा है।


इससे पहले मेक जोक ऑफ के वीडियो- चाचा के पटाखे, एंग्री बाबा और मकान मालिक जैसे वीडियो काफी मशहूर हुए थे। चाचा के पटाखे को 20 मिलियन से ज्यादा व्यूज मिले थे। जो अपने आप में ही काफी बड़ी बात है।


खास बात यह है कि मेक जोक ऑफ वीडियो बनाने वाला शख्स महज 18 साल का है। एनिमेशन से लेकर सभी किरदारों के वॉइस ओवर का काम भी वो खुद करता है। फिलहाल आप देखिए ये मजेदार वीडियो।

वीडियो यहाँ पर देखें ~


Click here watch directly on YouTube.

Sunday, 14 January 2018

अतिक्रमण से गायब हुए फुटपाथ।

शहर की जिस सड़क को साफ-सुथरा व चौड़ा होना चाहिए उसे अतिक्रमण व कब्जों ने संकरा कर दिया है। माल रोड से बर्रा बाईपास तक जाने वाली सड़क की तकलीफ सिर्फ इतनी ही नहीं बल्कि पूरे दिन लगने वाले जाम में हजारों लोग कराह उठते हैं। 'दैनिक जागरण' ने इस 14.6 किमी. लंबे मार्ग की परेशानियों को प्रमुखता से उठाया, जिसमें शहर के जिम्मेदारों ने इस रोड की समस्या को दूर करने के लिए मॉडल रोड बनाने का उपाय भी सुझाया है।
मालरोड से फूलबाग,नानाराव पार्क, मेघदूत तिराहा, बड़ा चौराहा, परेड, लालइमली चौराहा, चुन्नीगंज चौराहा, बजरिया चौराहा, हर्ष नगर चौराहा, मेडिकल कालेज पुल, फजलगंज चौराहा, चावला मार्केट चौराहा, नंदलाल चौराहा से लेकर बर्रा बाईपास तक की सड़क के फुटपाथ अतिक्रमण और कब्जों में गुम हो गए हैं। कहीं पार्किंग तो कहीं दुकान व शोरूम का सामान सजा रखा रहता है। इससे सड़क जाम रहती है।
इसके अलावा शहर के अन्य इलाकों की बात करें तो स्वरूप नगर से आर्यनगर चौराहे तक, गुमटी से संत नगर चौराहे तक, रावतपुर क्रासिंग से लेकर डबल पुलिया, हरजेंदर नगर से चंद्रनगर तक, घंटाघर से परेड, बिरहाना रोड ये सारे ऐसे क्षेत्र हैं जहां अतिक्रमण ने सड़कों की चौड़ाई खत्म कर दी है। इससे पूरे शहर के हर कोने में जाम के हालात रहते हैं।

ऐसे मिल सकती है निजात.
नरोना चौराहा से बाईपास तक सड़क को मॉडल रोड बनाने के लिए सिर्फ अतिक्रमण हटाना होगा। सड़क पर चौराहों व जगह-जगह लगने वाले ठेलों को हटाया जाए। अतिक्रमण हट जाएगा तो सड़क अपने आप चौड़ी हो जाएगी। साथ ही सड़क पर खड़े होने वाले वाहनों के लिए पार्किग की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा चौराहे पर टेंपो-आटो और अन्य वाहन न खड़े होने दिए जाएं। इनके खड़े होने से जाम लगता है। इसके अलावा राहगीरों के लिए फुटपाथ व सड़क पर जेब्रा लाइन बनायी जाए।- आरपी शुक्ला, सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, नगर निगम कानपुर नगर
''जिन्होंने अतिक्रमण किया है, वे खुद ही उसे हटा लें तो अच्छा होगा। अन्यथा प्रशासन अभियान चलाएगा तो फिर कार्रवाई की जाएगी। इस मार्ग को बनाने की प्रक्रिया शुरू हो रही है। लोग इसे खुद ही अतिक्रमण मुक्त रखें।
- सुरेंद्र सिंह, डीएम.

''अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ आइपीसी की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है। नोटिस के बाद भी दोबारा अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। - अखिलेश कुमार, एसएसपी
सभी के सहयोग से अभियान चलाकर नरोना चौराहे से बाईपास तक अतिक्रमण हटाया जाएगा। साथ ही चौराहों को भी व्यवस्थित किया जाएगा ताकि ट्रैफिक सुचारु रूप से चलता रहे।

Friday, 29 December 2017

चावल कम देने पर राशन कोटेदार का लाइसेंस रद्द।

जिला आपूर्ति अधिकारी (डीएसओ) ने 12 राशन दुकानदारों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इन दुकानों का बुधवार को डीएम, एडीएम आदि अफसरों ने निरीक्षण किया था। एक का लाइसेंस निलंबित किया गया है। वहां पर एडीएम सिटी सतीश पाल को 19.82 क्विंटल चावल कम मिला था।
एडीएम सिटी सतीश पाल ने कृष्णा नगर के रितेश सिंह की दुकान की जांच की थी तो वहां रेट बोर्ड, स्टाक बोर्ड नियम के अनुसार प्रदर्शित नहीं था। कल्पना शुक्ला की दुकान पर उन्हें 1.50 क्विंटल चावल कम मिला था जबकि विमला देवी की दुकान पर एक क्विंटल गेहूं और 19.82 क्विंटल चावल कम मिला था। मामले में अब डीएसओ विजय प्रभा अवस्थी ने विमला देवी की दुकान का लाइसेंस निलंबित किया है। रितेश सिंह, गीता, कल्पना शुक्ला, श्री शर्मा, किशोर कुमार, राम कुमार, आलोक विश्वकर्मा, संदीप कुशवाहा, शिवराज यादव, सर्वेश कुमार, राजकुमारी, राजकुमार गुप्ता, चंद्रशेखर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

बिना पी.ओ.एस मशीन बांटा राशन !
एडीएम वित्त एवं राजस्व संजय चौहान ने जाजमऊ स्थित कोतवाल की दुकान पर छापा मारा। जांच में पता चला कि दुकानदार ने 10 उपभोक्ताओं को बिना पीओएस मशीन के ही राशन बांट दिया है। नियम है कि बिना मशीन पर अंगुली का निशान लगवाए राशन नहीं बांटा जाएगा।

Monday, 18 December 2017

सिक्कों की वजह से बढ़ रही महंगाई।

बैंकों की मनमानी और भारतीय रिजर्व बैंक की चुप्पी जनता पर महंगाई का बोझ डाल रही है। करोड़ों रुपये के सिक्कों तले दबे कारोबारी अब सिक्के कमीशन पर बदलने को मजबूर हैं और इसे अपने सामान की लागत में जोड़ रहे हैं। इससे जीएसटी लागू कर महंगाई पर अंकुश लगाने के केंद्र सरकार का सपने बिखर रहा है। वहीं आम आदमी की जेब पर अधिक बोझ पड़ रहा है। बैंक जहां सिक्के जमा करने से इन्कार कर रहे हैं और आरबीआइ इस संबंध में कोई कड़ा कदम नहीं उठा रही है।
कानपुर में इस समय 200 करोड़ रुपये से अधिक के सिक्के बाजार में हैं। सिक्कों की बहुतायत को देखते हुए कारोबारियों ने सिक्के लेना बंद किया तो कारोबार पर असर पड़ने लगा। उन्होंने सिक्के लेने शुरू किए तो कारोबारी पूंजी फंसने लगी। इससे निजात पाने के लिए कारोबारियों ने सिक्कों को नोटों में बदलना शुरू किया। रेजगारी को नोटों में बदलने वाले एजेंट इसका फायदा उठा रहे हैं और 15 फीसद से लेकर तीस फीसद तक कमीशन ले रहे हैं।
नयागंज के कारोबारी हों या फिर कचरी, फूड प्रोसेसिंग और अगरबत्ती के उत्पादक, कमीशन एजेंट के मनमाने रेट पर रेजगारी बदल रहे हैं। इसका असर दिखा कि कारोबारियों ने इस पैसे को उत्पाद की लागत में जोड़ दिया और उसी के अनुसार कीमत बढ़ा दी है। कुछ ने मात्रा कम कर दी है। एक रुपये से पांच रुपये तक नमकीन, सोया, कचरी जैसे प्रोडक्ट बनाने वाले एक कारोबारी का कहना है कि पहले वह जिस पैकेट में 35 ग्राम सामान पैक करते थे, अब उसी रेट में तीस ग्राम की पैकिंग कर रहे हैं।
अगरबत्ती उत्पादक एसके सिन्हा कहते हैं, अगरबत्ती जैसे काम फुटकर कारोबार पर चलते हैं। सेल्समैन बेचता है, दुकानदार सिक्के भी देते हैं। इन सिक्कों को न लें तो कारोबार न चले और लें तो कमीशन पर बदलें। कारोबारी क्या करें। सरकार कारोबारियों की इस समस्या पर ध्यान नहीं दे रही।
आरबीआइ कह रही सीमा नहीं, बैंक कह रहे एक हजार: सिक्का अधिनियम 2011 की धारा 6(1) को ढाल बनाकर बैंक 1000 रुपये तक के सिक्के जमा करने की बात कह रहे हैं, हालांकि वे यह भी नहीं जमा कर रहे हैं। हकीकत में बैंक खातों में सिक्का जमा करने के संबंध में कोई नियम है ही। खुद आरबीआइ ने जन सूचना के तहत दी जानकारी में इसे स्पष्ट किया है। इसके बाद भी बैंक आरबीआइ के नियम को तोड़मरोड़ कर अपने फायदे के लिए केंद्र सरकार के सपने, कारोबार और आम आदमी की जेब, सभी को झटका दे रहे हैं।
यू.पी और कानपुर के कारोबारियों की मजबूरी का फायदा दिल्ली उठा रहा है। कानपुर से लाखों की मात्रा में रेजगारी दिल्ली भेजी जा रही है। बीते एक महीने में दो बार ऐसे मामले पकड़े गए, जिसमें करीब साठ लाख रुपये की रेजगारी एक्सचेंज होने के लिए दिल्ली जा रही थी। यहां के एजेंट दिल्ली में रेजगारी को कम कमीशन पर बदल कर रुपया बना रहे हैं।


Sunday, 10 December 2017

ऑयल कंपनियों ने इजीटैप कंपनी और एचडीएफसी बैंक के साथ करार कर डिजिटल डिलीवरी कंफरमेशन योजना की शुरूआत की

समय से सिलेंडर न मिलने व एक उपभोक्ता का सिलेंडर दूसरे को देने की समस्या आज भी आम है। शिकायत पर एजेंसी संचालक भी डिलीवरी मैन के उपर जिम्मेदारी डालकर पल्ला झाड़ लेते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा। रियल टाइम डिलीवरी के लिए डिलीवरी मैन को हैंडहेल्ड डिवाइस दी जाएगी।

ऑयल कंपनियों ने इजीटैप कंपनी और एचडीएफसी बैंक के साथ करार कर डिजिटल डिलीवरी कंफरमेशन योजना की शुरूआत की है। इस योजना के तहत डिलीवरी मैन को एक हैंडहेल्ड डिवाइस दी जाएगी। उपभोक्ताओं को सिलेंडर की आपूर्ति करते वक्त डिलीवरी मैन इस डिवाइस पर डिटेल अंकित करेंगे। डिटेल दर्ज होते ही उपभोक्ता के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी आएगा जिसे डिलीवरी मैन हैंडहेल्ड डिवाइस में पंच (दर्ज) करेगा। इसके बाद डिलीवरी प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी। यह प्रक्रिया ठीक उसी तरह से होगी जैसे ऑनलाइन शापिंग में खरीदे गए प्रोडक्ट की डिलीवरी पर डिलीवरी मैन करते हैं।
दिए जाएंगे एलपीजी स्मार्ट कार्ड
रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर न होने की स्थिति में उपभोक्ताओं को एलपीजी स्मार्ट कार्ड दिए जाएंगे। यह स्मार्ट कार्ड हैंडहेल्ड डिवाइस में स्वैप करते ही डिलीवरी कंफर्म हो जाएगी।
डिजिटल पेमेंट कर सकेंगे उपभोक्ता
हैंडहेल्ड डिवाइस में डिजिटल पेमेंट का भी विकल्प है। इसके जरिये उपभोक्ता कैश की जगह क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और एटीएम समेत अन्य माध्यमों से डिजिटल पेमेंट भी कर सकेंगे।
डिलीवरी मैन को दिए जाएंगे स्मार्ट फोन
दरअसल हैंडहेल्ड डिवाइस को स्मार्ट फोन से जोड़ा जाएगा। गैस वितरक संघ के पदाधिकारी बताते हैं कि जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं हैं, उन्हे उपलब्ध कराए जाएंगे। जीपीएस आधारित इस डिवाइस के आने से डिलीवरी मैन कहां, कब और किसे सिलेंडर आपूर्ति करेंगे, यह सब एजेंसी संचालकों की निगाह में होगा।
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साफ्टवेयर में स्वत: दर्ज होगी सूचना
डिलीवरी मैन हैंडहेल्ड डिवाइस में जो भी सूचना अपडेट करेंगे वह तत्काल आइओसी के साफ्टवेयर इंडसाफ्ट में दर्ज हो जाएगी। इसी तरह बीपीसी और एचपीसी के साफ्टवेयर में भी सूचनाएं अपडेट हो जाएगी।
कम हो जाएगा एजेंसी संचालकों का काम
अभी पूरे दिन सिलेंडरों की डिलीवरी के बाद शाम को कूपन के आधार पर प्रत्येक डिलीवरी मैन से मिला डाटा कर्मचारी कंप्यूटर पर दर्ज करते हैं जिसमे काफी वक्त लगता है। हैंडहेल्ड डिवाइस के बाद इस काम से मुक्ति मिल जाएगी क्योंकि तब डिलीवरी के वक्त ही डाटा अपडेट हो जाएगा।

किसका क्या है काम
इस योजना के तहत इजीटैप कंपनी एक हैंडहेल्ड डिवाइस से मिला उपभोक्ता का डाटा सहेजकर रखेगी और सिलेंडर लेनदेन की प्रक्रिया का संचालन करेगी। वहीं डिवाइस के जरिये हुए भुगतान की जिम्मेदारी बैंक देखेगा।

इन समस्याओं से मिलेगी निजात
-बुकिंग के तीन से चार दिन बाद भी डिलीवरी नहीं मिलती
-उपभोक्ता एजेंसी में शिकायत करते हैं तब पता चलता है उनके खाते का सिलेंडर भेज दिया गया
-एजेंसी संचालकों को डिलीवर्ड सिलेंडरों की पूरी जानकारी शाम को हो पाती है
-बल्क में प्रतिदिन होने वाली मैनुअल डाटा फीडिंग में अक्सर गलती होती
-डिलीवरी मैन अक्सर एक उपभोक्ता का सिलेंडर दूसरे को डिलीवर कर देते हैं
-अभी सब्सिडी खाते में पहुंचने में चार से पांच दिन लगते हैं

'इस प्रक्रिया के आने से डिलीवरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ जाएगी। यह उपभोक्ताओं और एजेंसी संचालकों के लिए काफी हद तक बेहतर साबित होगा। डिवाइस मिल गई है। नए वर्ष से इसकी शुरूआत हो जाएगी।'
अमित पांडेय, महामंत्री गैस वितरक संघ

Friday, 8 December 2017

लोगों की सोच बदल रही है, मगर सरकारी दफ्तर के सिस्टम नहीं बदले !

स्वच्छ भारत मिशन से जुड़े विशेषज्ञ इस बात को कई मर्तबा दोहरा चुके हैं कि शौचालय बनवाना बड़ी बात नहीं, पीढि़यों पुरानी सोच बदलना चुनौती है। मगर, यहां तो उल्टी कहानी है। ये महिलाएं खुले में शौच नहीं जाना चाहतीं। वे घर में शौचालय बनवाना चाहती हैं। उनकी सोच तो बदल गई, लेकिन सरकारी सिस्टम ऐसा है कि नगर निगम के अधिकारी गंभीरता दिखा ही नहीं रहे।

कपली गांव, गंभीरपुर और गंगागंज पनकी क्षेत्र में हैं। यहां गरीब आबादी बहुतायत में है। क्षेत्र की महिलाएं शुक्रवार को उर्वशी महिला कल्याण सेवा समिति की अध्यक्ष ऊषा श्रीवास्तव की अगुआई में नगर निगम पहुंचीं। उनका कहना था कि हमारे क्षेत्र में अधिकांश घरों में शौचालय नहीं हैं। जब प्रधानमंत्री मोदी का स्वच्छ भारत मिशन शुरू हुआ। सभी को खुले में शौच जाने से मना किया गया तो हम लोगों ने शौचालय निर्माण के लिए नगर निगम में लिखित आवेदन किया। कर्मचारी घर गए। जगह देखी। शौचालय बनवाने का वादा किया, लेकिन आगे कोई प्रक्रिया नहीं बढ़ी। ऊषा श्रीवास्तव ने बताया कि डेढ़ माह पहले भी महिलाएं नगर निगम आई थीं। तब अधिकारियों ने कह दिया था कि निकाय चुनाव खत्म होने के बाद बनवाएंगे। मगर, उसके बाद भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। गुरुवार को महिलाएं निगम द्वार पर नगर आयुक्त अविनाश सिंह का इंतजार कर रही थीं। दोपहर तक वह नहीं पहुंचे तो उनके किसी अधीनस्थ को ज्ञापन सौंपकर लौट गई।